Travel Guide of India and Hobbyist Magazine – Indigenous Food, Ancient Caves, Ancient Temples, Archaeological Sites, Historical Places, Agricultural Crops, Heritage, Culture, Art, Architecture, Gardens, Music, Dance, Crafts, Photography, Books, Advertising and more.
बिहार का सुप्रसिद्ध चावल “गोविंद भोग” जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, भगवान गोविंदा का भोग बनाने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली मुख्य सामग्री है। बिहार के कैमूर ज़िले में इसकी खेती किए जाने के पीछे एक बड़ा ही रोचक इतिहास है।
मोकरी गाँव जो कि कैमूर जिले की माँ मूँदेश्वरी पहाड़ी के नीचे स्थित है, अपनी मिठास और सोन्धी महक से भरे गोविंद भोग चावलों के लिए प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है की माँ का मंदिर इसी पहाड़ी पर स्थित है। गाँव वालों का कहना है कि वर्षा ऋतु के समय पहाड़ पर गिरने वाला पानी उस जगह को छूता हुआ खेतों की ओर निकलता है जहाँ माता विराजमान हैं, इसलिए यह कई औषधीय गुणों से भरपूर है।
ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु में खेतों की मिट्टी बहुत नरम हो जाने से चावल बहुत सुगंधित और नरम हो जाता है। ग्रामीणों का स्पष्ट रूप से ऐसा मानना है कि अगर यही चावल मोकरी के अलावा यदि कहीं और उगाया जाए तो ऐसी सुगंध और गुणवत्ता उसमें नहीं आएगी। ऐसी है, मोकरी गाँव की मिट्टी की विशेषता।
इसी पानी से पूरे गाँव और आस पास के क्षेत्रों की सिंचाई की जाती है। कैमूर ज़िले का कटारनी चावल भी बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि गोविंद भोग और कटारनी चावल ईस्ट इंडिया कम्पनी से सम्बंधित व्यापारियों द्वारा लंदन भेजे जाते थे। कई देशों में इसकी बहुत माँग थी।
दुर्भाग्यवश, कटारनी चावल विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसका कारण है, सिंचाई की उच्च लागत, अन्य क़िस्मों के चावलों की खेती और उनकी तीव्र उपज तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में इनकी माँग में गिरावट होने से पिछले कुछ वर्षों में इसके उत्पादन पर असर पड़ा है।
हाल ही में बिहार का यह सुप्रसिद्ध चावल फिर से सुर्ख़ियो में आया है क्योंकि यह अयोध्या में राम लला के मंदिर में भोग और प्रसाद बनाने के लिए मँगवाया गया था। इससे ग्रामवासियों में ख़ुशी की लहर छा गई।
इसमें कोई शक नहीं कि छोटे दाने का गोविंद भोग चावल स्वाद और गुणवत्ता में उच्च कोटि का है और आसानी से उपलब्ध बासमती चावलों की तुलना में कहीं अधिक महक और सोन्धेपन से भरपूर हैं।
Leave a Reply