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श्रीविल्लिपुत्तूर ना केवल आण्डाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि दूध से बनी एक खास मिठाई के लिए भी प्रसिद्ध है जिसे स्थानीय भाषा में पालखोवा कहते है। तमिल भाषा में ‘पाल’ का अर्थ होता है ‘दूध’। यह केवल गाय का दूध और शक्कर के मिश्रण से बनाई जाती है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि संन १९४० से यह मिठाई घरेलू उद्योग के रूप में यहां बनाई और बेची जा रही है।
इस स्वादिष्ट मिठाई के यहां बनाए जाने के पीछे की कहानी यह है कि इस क्षेत्र में दूध का उत्पादन बहुतायत से होता है अत: उपभोग के बाद जो दूध बचता था उसका सदुपयोग करने के लिए यहां के लोगों ने इस स्वादिष्ट मिठाई को बनाया जोकि अब श्रीविल्लिपुत्तूर पालखोवा के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी लोकप्रियता के कारण यह अब यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय है गया है।
सन् १९४५ में सरकार द्वारा स्थापित सहकारी समितियों ने स्थानीय लोगों के द्वारा, इस मिठाई को बनाने के खास तरीके को अपनाते हुए, बड़े पैमाने पर पालखोवा बनाने का बीड़ा उठाया। यहां के दूध की खासियत यहां की उत्तम जलवायु है जो विभिन्न किस्म की फसलों की उपज में सहायक होती है जिसे बाद में पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यही चारा गायों को दिया जाता है और इसके अलावा चरने के लिए जो घास इन्हें मिलती है वह बहुत उत्तम होती है। यही दूध की उत्कृष्ट गुणवत्ता का कारण है, जो कि मिठाइयों में परिलक्षित होता है। यहां के दूध में स्वाभाविक मिठास होने के कारण थोड़ी मात्रा में ही शक्कर का प्रयोग किया जाता है जिससे इस मिठाई का स्वाद असाधारण रूप से बढ़ जाता है।
गाय का दूध विक्रेताओं और सहकारी समितियों से सुबह तड़के ही मंगवा लिया जाता है। इमली की लकड़ी का इस्तेमाल करके, चूल्हे पर धीमी आंच में, पारम्परिक विधि से दूध पकाया जाता है। दूध गाढ़ा हो जाने पर उसमें शक्कर मिलाकर, एक चौड़े मुंह वाले लोहे के थाल में डाल दिया जाता है। बनकर तैयार हो जाने पर यह पीले या थोड़े भूरे रंग की, चिकनी और थोड़ी ठोस, हो जाती है। इसे बटर पेपर में लपेटकर तोल के हिसाब से बेचा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब २००० किलो पालखोवा प्रतिदिन बनकर तैयार होता है। यह सात से दस दिनों तक खराब नहीं होता।
राज्य के अन्य क्षेत्रों की तुलना में, यहां के दूध में वसा की मात्रा अधिक होने के कारण यह स्वाद और सुगन्ध दोनों में उत्कृष्ट होता है। पालखोवा बनाने वालों का कहना है कि वे १० लीटर दूध से ३.२५ या कभी ३.५० किलो पालखोवा बना लेते हैं जबकि अन्य स्थानों में इतनी मात्रा के दूध से ३ किलो से भी कम बना पाते हैं। हर दस लीटर दूध के लिए करीब सवा किलो शक्कर मिलाई जाती है।
श्रीविलिपुतुर का पालखोवा जो कि मुंह में डालते ही घुल जाता है, २०१९ में भौगोलिक सांकेतिक टैग (जी आई) प्राप्त करने में सफल हुआ। ध्यान देने योग्य दिलचस्प बात यह है कि इसे बनाने का नुस्खा उत्तर भारत की प्रसिद्ध मिठाई ‘दूध की बर्फ़ी’ से प्राप्त हुआ, यहां के दूध में वैसी ही मिठास के कारण यह यहां भी प्रसिद्ध हो गया।
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