मेरठ कैंची- ३५० साल पुराना घरेलू उद्योग – (Meerut Scissors, Uttar Pradesh)

मेरठ में कैंची निर्माण ३५० वर्ष पुराना घरेलू उद्योग है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां अखुंजी नाम का एक लुहार रहता था, जिसने मुगल काल के दौरान सन १६ ४५  में, चमडा काटने के लिय दो तलवारों को मिलाकर भारत में निर्मित कैंची की पहली जोड़ी का निर्माण किया था।

 

कैंची निर्माण, वास्तव में एक पारिवारिक व्यवसाय है जो कि घरेलू और अंतराष्ट्रीय दोनो क्षेत्रों की मांग की आपूर्ति करता है। कैंची निर्माताओं ने दो साल के अथक प्रयास के बाद ऐतिहासिक साक्ष्य, मुद्रित पैकिंग सामग्री, राजपत्र की प्रतिलिपि तथा अन्य कई साक्ष्य भौगोलिक टैग समिति के सामने प्रस्तुत किए ताकि उनके इस दावे की पुष्टि हो सके कि भारत की सबसे पहली कैंची का निर्माण यहीं हुआ था। यही कारण था कि २०१३ में मेरठ की कैंची भौगोलिक संकेत टैग के सम्मान की अधिकारिणी हुई।

 

यह एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है और मेरठ शहर  तथा उत्तर प्रदेश राज्य के लिये बड़े ही गर्व की बात है। परन्तु खेद का विषय है कि शहर और राज्य के बहुत ही कम लोगों को मेरठ की कैंची को मिले इस अंतरर्राष्ट्रीय सम्मान की जानकारी है। कैंची बाज़ार में लगभग ६०० इकाइयां है और लगभग ७ ०,००० कारीगरों को यहां रोजगार मिलता है। कैंची का हर जोड़ा करीबन २२ कुशल कारीगरों के हाथों से होकर गुजरता है। ये सभी कारीगर अलग अलग प्रक्रियाओं के विशेषज्ञ होते हैं। जिसमें काटना, धार देना, जोड़ना, चमकाना और भी बहुत कुछ शामिल होता है।

 

मेरठ की कैंची की अपनी कुछ अनूठी विशेषताएं हैं, ये मजबूत, धारदार, वजनदार , सुघड़ बनावट वाली और सालों साल चलने वाली होती है। कारीगर इसका श्रेय बनावट की बारीकियों को ध्यान में रखते हुए सजगता और सतर्कतापूर्वक किए गए अपने काम को देते हैं। इसी कारण मेरठ की हस्त निर्मित कैंचियां मशीन निर्मित कैंचियों की अपेक्षा उत्कृष्ट कोटि की होती हैं। सारे देश में दर्ज़ियों से लेकर नाई तक इन्हीं कैचियों का इस्तेमाल करना पसंद करते है।

 

विभिन्न उपयोगों के अनुसार इन कैंचियों का आकार और प्रकार बदल कर इन्हें बनाया जाता है। जैसे कुछ वजनदार तो कुछ हल्की, कुछ लंबी तो कुछ छोटी, कुछ नोकदार तो कुछ बेनोकदार। इनके ब्लेड कार्बन स्टील के बने होते हैं जो कि रेलवे और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से निकलने वाले रद्दी सामान से प्राप्त किए जाते हैं।

 

इन कैंचियों की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इनकी कई बार मरम्मत करके ये फिर से उपयोग में लाई जा सकती है। “दादा ले पोता बरते” ये  इस लोकप्रिय मुहावरे को साकार करती हैं।

 

लेखिका: लक्ष्मी सुब्रह्मणियन (https://sahasa.in/2020/07/27/meerut-scissors-a-350-year-old-cottage-industry/)

हिंदी अनुवाद: गीता खन्ना बल्से

 

* तस्वीरें केवल प्रतीकात्मक हैं (सार्वजनिक डोमेन / इंटरनेट से ली गई हैं। अनजाने में हुए कापिराइट नियमों के उल्लंघन के लिए खेद है।)

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑

%d bloggers like this: