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निर्मल शिल्प कला का नाम आंध्र प्रदेश – तेलंगाना के सुविख्यात शासक नेम्मा नायडू के नाम पर पड़ा है जो कि विविध कलाओं के महान संरक्षक थे। खिलौने बनाने की बारीकियों और शिल्प कौशल को देखकर उन्होंने इस कला को प्रोत्साहित किया। उनके राज्य में यह उद्योग खूब पनपा और इसने तेलंगाना राज्य के निर्मल शहर को इस कला के जरिए खूब प्रसिद्धि दिलाई।
निर्मल कला का उल्लेख हमें काकतीय युग से मिलता है। उस समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि नरम लकड़ी से बने खिलौने, आकर्षक चित्र और फर्नीचर ये सभी चार सौ साल पुरानी पारम्परिक कला के नमूने हैं। यहां पर स्थापित लोहे की ढलाई वाली भट्टियों से हैदराबाद राज्य के निज़ाम की सेना को उनकी तोपों के लिए आवश्यक गोला बारूद मुहैय्या कराया जाता था, जबकि नक्काश कारीगरों ने लकड़ी के खिलौने बनाकर अपने अद्वितीय कौशल का परिचय दिया। निज़ाम द्वारा दिया गया संरक्षण इन खिलौनों की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण है। निर्मल शहर की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार की है कि यह भारत के उत्तर और मध्य भागों को दक्षिण से जोड़ता है, यही कारण है कि हस्तशिल्प के क्षेत्र में केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसे एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ है।
ऐसी किंवदंती है कि राजस्थान से कुछ नक्काश परिवार १७वीं शताब्दी में इस क्षेत्र मै आकर बसे थे और वे ही इस कला को अपने साथ लाएं थे। इन खिलौनों को बनाने के लिए तीन मुख्य तत्व उपयोग में लाए जाते हैं, वे है: लकड़ी, रंग और एक खास प्रकार का खारा घोल जिसे लाई कहते हैं। नक्काश कारीगर खिलौने बनाने के लिए स्थानीय जंगलों में पाई जाने वाली नरम लकड़ी पोनिकी या सफेद संडर का प्रयोग करते हैं। अन्य पेड़ों की तुलना में यह लकड़ी अधिक नरम और लचीली होने की कारण कारीगरों को विविध प्रकार के खिलौनों का उत्पादन करने में मदद करती है।
लकड़ी के टुकडों को विभिन्न आकार और प्रकार में काटा जाता है, और इनको एक विशेष प्रकार के गोंद से चिपका दिया जाता है, फिर इसको चिंटा लैपाम नामक लेप से लेपित किया जाता है जोकि लकड़ी के बुरादे और इमली के बीज उबालकर तैयार किया जाता है। फिर उसपर सफेद मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं ताकि दरारें भरी जा सकें और सतह को समतल किया जा सके। इस प्रक्रिया के बाद खिलौनों को सुखाकर उनपर रंग चढ़ाया जाता हैं।
ये खिलौने प्राकृतिक रंगों से रंगे जाते हैं जो इन्हे आश्चर्यजनक रूप से सुनहरी चमक प्रदान करते हैं। इनपर तेलयुक्त रंगों की पर्त भी चढ़ाई जाती है। इनपर चमक लाने के लिए डिको रंग और तामचीनी रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है जो इनको एक अनूठी चमक प्रदान करते हैं।
दीवारों पर टांगे जाने वाले चित्र व अन्य सजावट की वस्तुएं कुछ अलग तरीके से बनाई जाती है क्योंकि इनके लिए सागौन की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इस लकड़ी को समतल, चिकना और चमकदार बनाने के लिए एक विशेष प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। इसपर लाख से पॉलिश की जाती है जिससे इसका चमकदार काला रंग उभरकर सामने आता है, फिर पृष्ठभूमि में मनचाहा रंग पाने के लिए डिको रंग स्प्रे किया जाता है। लकड़ी पर जो भी आकृति चुनी जाती है उसे कलाकार उसी प्रकार के रंगों से भरते हैं। स्थानीय स्तर पर तैयार रंग ही इन चित्रों में भरे जाते हैं।
निर्मल शिल्प में बनाए जाने वाले रूपांकन आमतौर पर अजंता एलोरा, काँगड़ा और मुगल लघु चित्रकला से प्रेरित होते हैं। निर्मल पेंटिग अपनी असाधारण बारीकियों के चित्रण के कारण लोकप्रिय हैं। इनके मुगल लघु चित्र, कला प्रेमियों के संकलन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। निर्मल खिलौनों और शिल्प को २००९ में भौगोलिक संकेत टैग (जी आई) प्राप्त हुआ।
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