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ऐसा माना जाता है कि अप्रतिम सुन्दरता से परिपूर्ण पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा का नाम वहां की देवी त्रिपुरसुंदरी के नाम पर पड़ा है। हालांकि १८०० से १९०० के आरम्भ के दशक में त्रिपुरा राज्य अपनी सुगंधित चाय के लिए सुप्रसिद्ध था, परन्तु आज इसने अपनी सार्वभौमिक पहचान उष्कटिबंधीय फल और सब्जियों की विस्तृत श्रृंखला के लिए बना ली है।
यहां का पहाड़ी इलाका, उष्णकटिबंधीय जलवायु, लगभग २५०० मिली मीटर वार्षिक वर्षा, प्रचुर मात्रा में नमी, उपजाऊ मिट्टी यह सभी मिलकर इस स्थान को बागवानी के लिए, आदर्श और अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। यही कारण है कि त्रिपुरा इस जलवायु का लाभ उठाकर जैविक खेती पर निर्भर करता है तथा उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर होता है।
यहां की पहाड़ियों की उपजाऊ मिट्टी अन्नानास, कटहल, संतरा, लीची, काजू, नारियल व नींबू की खेती के लिए अनुकूल है, इसी कारण ये सभी फल यहां प्रचुर मात्रा में उगाए जाते है।
त्रिपुरा की क्वीन नाम से प्रसिद्ध, यहां का अन्नानास, जो कि राजकीय फल के रूप में सम्मानित है, किसानों की सबसे पसंदीदा फसल है। यहां एक कहावत प्रचलित है कि “अन्नानास उन्हें कभी धोखा नहीं देगा” इसका तात्पर्य है कि यदि कोई अन्य फसल प्रतिकूल परिस्थतियों के कारण भले ही विफल हो जाए परन्तु अन्नानास दृढ़तापूर्वक खड़ा रहेगा और इसकी फसल का उत्पादन उनके जीवित रहने के लिए पर्याप्त आमदनी प्रदान करेगा। उत्तरी त्रिपुरा जिले के कुमारघाट प्रखंड के नलकाटा क्षेत्र में रहनेवाले मीजो की एक उपजाति डारर्लोंग की यह दृढ़ आस्था उनकी बस्ती में अन्नानास की भरपूर फसल में अपना विशेष योगदान देती है।
त्रिपुरा के किसानों ने अन्नानास की खेती के विभिन्न तरीकों का बीड़ा उठाया है। त्रिपुरा भारत के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में से एक है, यहां राज्यभर में वाणिज्यिक पैमाने पर अन्नानास के बागान लगाए जाते हैं। प्रतिवर्ष त्रिपुरा में अनुमानत: १.२८ मीट्रिक टन अन्नानास का उत्पादन ८८०० हेक्टेयर भूमि पर किया जाता है। प्रति हेक्टेयर अन्नानास की उत्पादकता १८.७३ टन है, जो १५.८० टन के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। धलाइ जिला राज्य में प्रति हेक्टेयर उत्पादन में सबसे अधिक उपज का रिकॉर्ड रखता है जो कि २१.८८ टन है। रिकार्ड्स के अनुसार त्रिपुरा में इस फल की खेती में ४००० से अधिक उत्पादक सक्रिय रुप में शामिल हैं।
क्वीन नाम से प्रसिद्ध अन्नानास कांटेदार, सुनहरा पीला रंग लिए विशिष्ट सुगंध से परिपूर्ण, रसभरा और स्वाद में खट्टा- मीठा होता है जो इसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जाने वाले अन्नानास की तुलना में विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। त्रिपुरा के इस स्वदिष्ट फल को वर्ष २०१५ में भौगोलिक संकेत टैग (जी आई) प्राप्त हुआ।
मई से जुलाई माह के बीच में, फसल की कटाई फल की आंखें पीली होने पर की जाती है। फल का औसत वज़न ६०० ग्राम से लेकर ८०० ग्राम के बीच में होता है और सामान्यत: थोक विक्रेताओं के लिए इसकी कीमत सात से आठ रूपए के बीच में होती है। जो अन्नानास पूरी तरह पकने के पहले ही तोड़ लिए जाते हैं वी १२ से १३ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर १ से ३ हफ्ते तक रखने पर पक जाते है और खराब नहीं होते ।
त्रिपुरा, मानव की आजीविका और प्रकृति से मिली विरासत के बीच में सामंजस्य और संतुलन का अद्भुत आदर्श मॉडल का प्रस्तुत करता है। सरकार अब बड़े पैमाने पर, बड़े और अधिक समय तक चलने वाले अन्नानासों की खेती की वैज्ञानिक विधि विकसित करने का काम कर रही है। इसके पीछे सरकार का इरादा यह है कि अन्नानास का आकार और पैदावार दोनों को बढ़ाया जाए ताकि किसानों की आय बढ़ सके क्योंकि पारम्परिक तरीके की खेती में पैदावार और आकार दोनों ही सीमित होते हैं।
क्वीन अन्नानास की बढ़ती मांग के चलते अब इसका निर्यात दुबई, दोहा, बांग्लादेश और अन्य दूसरे देशों में बढ़ा है। जैविक पद्धति से उगाए जाने वाले इस फल में अपार संभावनाएं है तथा उत्पादकों की मदद के लिए प्रोसेसिंग फैक्ट्रीयां समय की मांग हैं।
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