भागलपुरी जर्दालू आम (Bhagalpuri Zardalu Mango, Bihar)

हालांकि भागलपुर के जर्दालू आम का उल्लेख भारत की उच्च कोटि की आम की श्रेणियों जैसे: दशहरी, लंगड़ा, हापुज में कहीं नहीं पाया जाता, परंतु इस सौंधी खुशबू वाले आम को अब धीरे धीरे वह पहचान मिल रही है, जिसका यह अधिकारी है। असल में, जर्दालू आम का अपना रोचक इतिहास है, कहा जाता है कि सबसे पहला जर्दालू आम का पौधा, भागलपुर क्षेत्र में उस समय के महाराजा, खड़गपुर हवेली के रहमत अली खान बहादुर द्वारा सन १८१० से १८२० के बीच में लगाया गया था। स्थानीय उत्पादकों का कहना है कि यह पहला वृक्ष जिसे हम मातृ वृक्ष कह सकते हैं, पिछली दो शताब्दियों से तागेपुर गांव में संरक्षित है।

 

जर्दालू, प्रेम फल के नाम से भी जाना जाता है, उसका कारण है इसकी मादक सुगंध, आकर्षक हल्का पीला रंग और स्वाद जिसकी तुलना स्वर्गीय आनंद से की जा सकती है। जर्दालू खासतौर पर भागलपुर और बिहार के आसपास के जिलों में पाया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है की यहां की जलवायु (२० डिग्री से २५ डिग्री सैल्सियस) और यहां पाई जाने वाली उत्तम श्रेणी की दोमट मिट्टी इस आम की फसल के लिए अत्युत्तम है। हालांकि सिर्फ भागलपुर में ही ११,९०० हेक्टेयर आमोके बागान है, परंतु जर्दालू के लिए सिर्फ १,५०० हेक्टेयर भूमि ही आरक्षित की गई है। इसका सालाना उत्पादन लगभग १०,००० मिट्रिक टन है ।

 

पीली आभा लिए मादक सुगंध वाला यह रसीला आम बहुत पतले छिलके वाला होता है, इसको छीलने के लिए धैर्य की जरूरत होती है पर उसके बाद जो स्वाद मिलता है वह कभी न भूलने वाला होता है। स्थानीय निवासी कहते हैं कि यह आम वजन में हल्का (२०० से २५० ग्राम) होने के कारण सुपाच्य होता है और एक बार में बिना किसी डर के, एक दर्जन आम खाए जा सकते है। यह विटामिन ए, बी ६, विटामिन सी, पोटैशियम, मैग्नेजियम का स्रोत है और एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर है।

 

इस आम में रेशा अधिक होता है और शर्करा कम होती है, इस कारण मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं। सन १०१८ में जरदालू आम को भौगोलिक सांकेतिक टैग (जी आई) से सम्मानित किया गया।

 

स्थानीय प्रशासन तथा सरकार इस सुगंधित आम के उत्पादन को बढ़ाने तथा दूसरे बाजारों में इसकी बिक्री को बढ़ावा देने के लिए बहुत तेज़ी से प्रयास कर रहे हैं। इस आम का छिलका बहुत पतला होने के कारण इसको सुरक्षित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना ही चिंता का विषय है। जैसा कि सभी फसलों के साथ होता है कि हम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रकृति पर निर्भर रहते हैं, उसी प्रकार इस आम को भी सही और अनुकूल तापमान की आवश्यकता होती है ताकि इसकी पीली आभा, पकने का समय, स्वाद और सुगंध उसी प्रकार बनी रहे। असमय वर्षा और तड़ित झंझाओ के साथ होने वाली भरी वर्षा जो अक्सर अप्रैल और मई के महीनों में हो जाती है, उससे बड़ी मात्रा में इन आमों के आकार और वजन में फर्क पड़ जाता है। उचित भंडारण व्यवस्था, प्रोसेसिंग यूनिट्स और उचित विपणन व्यवस्था किसानों की लाभ दर को हर वर्ष बढ़ाने में सहायक होंगे।

 

प्रसन्नता का विषय है कि इस रसीले आम की आहट अंतर्रष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच चुकी है, इसका स्वाद, सुगंध और मिठास ही इसकी प्रतिष्ठा का कारण है।

 

लेखिका: लक्ष्मी सुब्रह्मणियन (https://sahasa.in/2020/11/02/bhagalpuri-zardalu-of-bihar/)

हिंदी अनुवाद: गीता खन्ना बल्से

 

* तस्वीरें केवल प्रतीकात्मक हैं (सार्वजनिक डोमेन / इंटरनेट से ली गई हैं। अनजाने में हुए कापिराइट नियमों के उल्लंघन के लिए खेद है।)

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